Shrimad Bhagwat Geeta Chapter 6 shlok 19

Just as a lamp in a windless place remains steady without flickering, the disciplined mind of a yogi stays unwavering in meditation on the Supreme.

Description

In this verse, Shree Krishna uses the simile of a lamp’s flame. In the presence of wind, the flame naturally flickers and is impossible to control. However, in a windless place, the flame remains steady like a picture. Similarly, the mind is naturally restless and difficult to control. But when a yogi’s mind is in enraptured union with God, it is shielded from the winds of desire. Such a yogi keeps the mind steady and under control through the power of devotion.

कठोर अनुशासन के माध्यम से, वे अपने मन को स्वार्थी इच्छाओं से हटाकर स्वयं की सर्वोच्च भलाई पर केंद्रित करना सीखते हैं। ऐसे व्यक्तियों को योग की स्थिति में माना जाता है और वे सभी संवेदी लालसाओं से मुक्त होते हैं।

विवरण

कोई व्यक्ति योग का अभ्यास कब पूरा करता है? इसका उत्तर यह है कि जब अनुशासित मन (चित्त) स्थिर हो जाता है और केवल ईश्वर पर केंद्रित हो जाता है। इस बिंदु पर, यह स्वाभाविक रूप से और सहजता से सांसारिक सुखों के लिए सभी संवेदी लालसाओं और इच्छाओं से हट जाता है। ऐसे व्यक्ति को तब युक्त, या पूर्ण योग में माना जा सकता है। इस अध्याय के अंत में यह भी कहा गया है: “सभी योगियों में से, जिनका मन हमेशा मुझमें लीन रहता है और जो महान विश्वास के साथ मेरी भक्ति में लगे रहते हैं, मैं उन्हें सबसे श्रेष्ठ मानता हूं।”

ଯେପରି ଏକ ପବନହୀନ ଜାଗାରେ ପ୍ରଦୀପ ick ଲସି ନ ରହି ସ୍ଥିର ରହିଥାଏ, ସେହିପରି ଯୋଗୀଙ୍କ ଶୃଙ୍ଖଳିତ ମନ ସର୍ବୋଚ୍ଚଙ୍କ ଧ୍ୟାନରେ ନିରନ୍ତର ରହିଥାଏ |

ବର୍ଣ୍ଣନା

ଏହି ପଦରେ, ଶ୍ରୀକୃଷ୍ଣ ଏକ ପ୍ରଦୀପ ପ୍ରଜ୍ୱଳନକୁ ବ୍ୟବହାର କରନ୍ତି | ପବନର ଉପସ୍ଥିତିରେ, ନିଆଁ ପ୍ରାକୃତିକ ଭାବରେ ick ଲସି ଉଠେ ଏବଂ ନିୟନ୍ତ୍ରଣ କରିବା ଅସମ୍ଭବ | ତଥାପି, ଏକ ପବନହୀନ ସ୍ଥାନରେ, ନିଆଁ ଚିତ୍ର ପରି ସ୍ଥିର ରହିଥାଏ | ସେହିଭଳି, ମନ ସ୍ୱାଭାବିକ ଭାବରେ ଅସ୍ଥିର ଏବଂ ନିୟନ୍ତ୍ରଣ କରିବା କଷ୍ଟକର | କିନ୍ତୁ ଯେତେବେଳେ ଯୋଗୀଙ୍କ ମନ ଭଗବାନଙ୍କ ସହିତ ଜଡିତ ହୁଏ, ଏହା ଇଚ୍ଛାର ପବନରୁ ରକ୍ଷା ପାଇଥାଏ | ଏହିପରି ଯୋଗ ଭକ୍ତିର ଶକ୍ତି ଦ୍ୱାରା ମନକୁ ସ୍ଥିର ଏବଂ ନିୟନ୍ତ୍ରଣରେ ରଖେ |

Leave a Comment

Your email address will not be published. Required fields are marked *

Shopping Cart