Shrimad Bhagwat Geeta Chapter 1 shlok 27

Bhagwat Geeta Chapter 1 Shlok -27

Shree Krishna’s words had a profound impact on Arjun. As he gazed upon the vast armies assembled on both sides of the battlefield, a heavy feeling of despair enveloped his heart. It was a stark realization that all those who stood before him, ready for battle, were his own kin, belonging to the same Kurus lineage.

The valiant warrior who, just moments ago, had been determined to exact vengeance on the Kauravas for their wickedness, now found himself overwhelmed with fear and doubt. The magnitude of the impending destruction and suffering that this war would bring began to erode his once unwavering resolve. In light of his inner turmoil, Sanjay aptly referred to him as “Kaunteyah,” signifying that Arjun had, in that moment, adopted a more tender-hearted disposition, reminiscent of his mother, Kunti.

However, amidst his confusion and inner turmoil, Arjun’s mind was filled with a barrage of questions, leaving him seeking clarity and guidance.

श्रीकृष्ण की बातों का अर्जुन पर गहरा प्रभाव पड़ा। जैसे ही उसने युद्ध के मैदान के दोनों ओर इकट्ठी हुई विशाल सेनाओं को देखा, उसके हृदय में निराशा की भारी भावना छा गई। यह स्पष्ट अहसास था कि जो लोग उसके सामने युद्ध के लिए तैयार खड़े थे, वे सभी उसके अपने रिश्तेदार थे, जो उसी कौरव वंश के थे।

वह वीर योद्धा, जो कुछ क्षण पहले ही कौरवों से उनकी दुष्टता का बदला लेने के लिए कृतसंकल्प था, अब स्वयं को भय और संदेह से घिरा हुआ पा रहा था। इस युद्ध से होने वाले आसन्न विनाश और पीड़ा की भयावहता ने उनके एक बार के अटूट संकल्प को ख़त्म करना शुरू कर दिया। उनकी आंतरिक उथल-पुथल को देखते हुए, संजय ने उन्हें उपयुक्त रूप से “कौन्तेयः” कहा, जो दर्शाता है कि अर्जुन ने, उस क्षण, अपनी माँ कुंती की याद दिलाते हुए, अधिक कोमल हृदय वाला स्वभाव अपनाया था।

हालाँकि, अपने भ्रम और आंतरिक उथल-पुथल के बीच, अर्जुन का दिमाग सवालों की बौछार से भर गया था, जिससे वह स्पष्टता और मार्गदर्शन की तलाश में था।

ଶ୍ରୀକୃଷ୍ଣଙ୍କ ଶବ୍ଦ ଅର୍ଜୁନ ଉପରେ ଗଭୀର ପ୍ରଭାବ ପକାଇଥିଲା। ସେ ଯୁଦ୍ଧକ୍ଷେତ୍ରର ଉଭୟ ପାର୍ଶ୍ୱରେ ଏକତ୍ରିତ ହୋଇଥିବା ବିଶାଳ ସ ies ନ୍ୟବାହିନୀକୁ ଚାହିଁଲେ, ତାଙ୍କ ହୃଦୟରେ ଏକ ନିରାଶାର ଭାବନା ଭରିଗଲା | ଏହା ଏକ ଦୃ real ହୃଦୟଙ୍ଗମ ଥିଲା ଯେ ଯେଉଁମାନେ ତାଙ୍କ ସମ୍ମୁଖରେ ଠିଆ ହୋଇଥିଲେ, ଯୁଦ୍ଧ ପାଇଁ ପ୍ରସ୍ତୁତ, ସେମାନେ ତାଙ୍କର ନିଜ ସମ୍ପର୍କୀୟ, ସମାନ କୁରୁସ୍ ବଂଶର ଥିଲେ |

ଏହି ବୀର ଯୋଦ୍ଧା, କିଛି କ୍ଷଣ ପୂର୍ବରୁ, ସେମାନଙ୍କର ଦୁଷ୍ଟତା ପାଇଁ କ ur ରବଙ୍କଠାରୁ ପ୍ରତିଶୋଧ ନେବାକୁ ସ୍ଥିର କରିଥିଲେ, ବର୍ତ୍ତମାନ ସେ ଭୟ ଏବଂ ସନ୍ଦେହରେ ଅତିଷ୍ଠ ହୋଇପଡିଛନ୍ତି | ଆସୁଥିବା ବିନାଶ ଏବଂ ଦୁ suffering ଖର ପରିମାଣ ଯାହା ଏହି ଯୁଦ୍ଧ ଆଣିବ ତାହା ତାଙ୍କର ଏକ ଅବିସ୍ମରଣୀୟ ସଂକଳ୍ପକୁ ନଷ୍ଟ କରିବାକୁ ଲାଗିଲା | ତାଙ୍କର ଆଭ୍ୟନ୍ତରୀଣ ଉତ୍ତେଜନାକୁ ଦୃଷ୍ଟିରେ ରଖି ସ Sanjay ୍ଜୟ ତାଙ୍କୁ “କ un ଣ୍ଟିୟା” ବୋଲି ଉପଯୁକ୍ତ ଭାବରେ ସୂଚିତ କରିଥିଲେ ଯେ ଅର୍ଜୁନ, ସେହି ମୁହୂର୍ତ୍ତରେ, ତାଙ୍କ ମାତା କୁନ୍ତୀଙ୍କୁ ସ୍ମରଣ କରି ଏକ ଅଧିକ କୋମଳ ମନୋଭାବ ପୋଷଣ କରିଥିଲେ |

ଅବଶ୍ୟ, ତାଙ୍କର ଦ୍ୱନ୍ଦ୍ୱ ଏବଂ ଭିତରର ଅଶାନ୍ତି ମଧ୍ୟରେ ଅର୍ଜୁନଙ୍କ ମନରେ ଅନେକ ପ୍ରଶ୍ନ ଭରି ରହିଥିଲା, ଯାହା ତାଙ୍କୁ ସ୍ୱଚ୍ଛତା ଏବଂ ମାର୍ଗଦର୍ଶନ ପାଇଁ ଛାଡି ଦେଇଥିଲା |

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